भारत मे पहली बार शुद्ध भारतीय नस्ल की “हरियाणवी गौ माँ” के शुद्ध दूध से बना है “वैदिक मथनी घृत”। वैदिक उत्पाद के माध्यम से हम विलुप्त प्राय गौ माँ के संरक्षण और संवर्धन का कार्य कर अपने आप को धन्य मानते है।
100% चरने वाली हरियाणवी गौ मां के क्षीर (दूध) से बना
वैदिक उत्पाद घृत हरियाणवी गौ माँ के दूध से बनाया जाता है। प्राकृतिक घास, अनमोल वन औषधि, एवं अन्य खनिजों से परिपूर्ण वन में स्वछंद विचरण कर गौमाता को कृतिक पोषण मिलता है। हमारी गौ माँ सिर्फ और सिर्फ स्वछंद विचरण करके तृप्त होती है, अन्य गौशालाओं की भांति हमारी गौ माँ को बांध कर अप्राकृतिक भोजन-चारा नही दिया जाता इसलिये ये सदा “प्रसन्न और स्वस्थ” रहते हुए दूध रुपी “अमृत” देती है।
मिट्टी की हंडिया में पके दूध से बना
1 लीटर “वैदिक मथनी घृत” को बनाने के लिये 30 से 32 लीटर शुद्ध दूध को सिर्फ मिट्टी की पवित्र हंडिया में 8 से 10 घंटे तक पकाया जाता है, जो देश में पहली बार इतने बड़े स्तर पर हो रहा है। पूरी प्रकिया में “एल्युमीनियम” के किसी पात्र का प्रयोग नही किया जाता। धीमी गति से पके इस दूध के सभी सूक्ष्म पोषक तत्व सुरक्षित रहते है जो कि अन्य घी बनाने वाले एल्युमीनियम और तेज अग्नि में पकाकर सभी पोषक तत्चों को नष्ट कर देते है।
भारत का पहला, गव्यसिद्धो के निरिक्षण और मानकों पर बना गौ घृत
“वैदिक मथनी घृत” भारत का पहला ऐसा घृत है जिसे गव्यसिद्धो के निरिक्षण और कड़े वैदिक मानकों पर बनाया जा रहा है। गव्यसिद्ध वो विशेषज्ञ हैं जो गौ के पांच गव्यों (दूध, दही, गौमूत्र, घृत और गोमय) में सिद्ध हैं। वैदिक उत्पाद में हम सिर्फ एक बात के लिये कटिबद्ध हैं और वो है “गुणवत्ता”।
वैदिक मथनी घृत के लाभ
भारतीय भोजन परंपरा अनुसार, तीनों काल में शाकाहारीयों का भोजन, गौघृत के बिना अकल्पनीय रहा है। कश्मीर से कन्याकुमारी, गुजरात से उत्तर पूर्व तक गौघृत भोजन का अटूट हिस्सा रहा है। भारतीय गौ के क्षीर (दूध) से बने घृत को अमृत जैसे सुंदर शब्द से अलंकृत किया है। समस्त देव और असुरो को प्रिय गौ घृत आज अधुनिकता और मॉडर्न साइंस (विध्वंसकारी विज्ञान) की चमक में अपने ही देश में अछूत सा बन गया है। पश्चिम से आई मान्यताओं, मिलावट, एवं अमर्यादित विधि से बनने के कारण, अमृत रुपी इसके गुणों को हमने भुला दिया।
आयुर्वेद की दृष्टि में लाभ
- समस्त पित्त दोषों को हरने वाला।
- जठराग्नि को प्रबल करने वाला। यही जठराग्नि भोजन को पचाकर उसमें उपलब्ध समस्त पोषक तत्वों को अवशोषित करने में सहायक होती है।
- रस-रक्त-मांस-मेद-मज्जा और शुक्र(वीर्य) रुपी सप्त धातुवर्धक।
- धारणा शक्ति, स्मरण शक्ति एवं ज्ञान शक्ति बढ़ाने वाला।
- समस्त वात विकारों को हरने वाला।
- बढ़ती आयु को स्थिर करने वाला।
- एसीडिटी, हाइपरएसीडिटी को नष्ट करने वाला।
- नेत्र ज्योति बढ़ाने वाला।
- त्वचा में कांति और स्निग्धता लाने वाला।
- यौवन को बढ़ाने वाला।
- केशवर्धक आदि।
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